विकास की शुरुआत अन्तिम छोर पर खड़े व्यक्ति से होः स्वामी चिदानन्द सरस्वती
ऋषिकेश: परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि विदेशी धरती पर रह रहे हमारे भारतीय भाई-बहनों को एक साथ जोड़ने और उनसे जुड़ने के लिये भारत सरकार प्रतिवर्ष प्रवासी भारतीय दिवस का आयोजन करती है ताकि सभी आपस में सहिष्णुता, प्रेम और करूणा के साथ अपने राष्ट्र के नव निर्माण में सहभागी बने तथा अपनी माटी और थाती से जुड़े रहें।
9 जनवरी, 2003 सेे प्रवासी भारतीय दिवस मनाने की शुरुआत की गयी थी। वर्ष 1915 में 9 जनवरी को महात्मा गांधी जी दक्षिण अफ्रीका से अपने देश भारत लौटे थे। गांधी जी को भारत का सबसे महत्वपूर्ण प्रवासी माना जाता है। उनके 22 वर्षों के संघर्षमय गौरवगाथा से प्रेरणा लेकर आज के दिन को प्रवासी भारतीय दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत के प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी जी ने ‘प्रवासी भारतीय दिवस’ 2021 का विषय “आत्मानिर्भर भारत हेतु योगदान“ रखा है, वास्तव में यह आज की सबसे प्रमुख आवश्यकता भी है। प्रवासी भारतीय दिवस के अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भारतीय मूल के अनेक लोग विश्व के लगभग सभी देशों में निवास करते हैं उन सभी के सुखद, सुरक्षित और समृद्ध जीवन के लिये प्रभु से प्रार्थना है। भारत के विकास और राष्ट्र निर्माण में प्रवासी भारतीयों का भी विशेष योगदान है तथा आगे भी भारत की इस विकास यात्रा में हम सभी साथ-साथ होंगे। उन्होंने कहा कि लगनशीलता और कर्मठता ही भारतीयों की पहचान है। भारत के युवाओं की पहचान संरक्षण से नहीं बल्कि आत्मनिर्भरता से है।स्वामी जी ने प्रवासी भारतीयों का आह्वान करते हुये कहा कि आप चाहे जहां पर भी निवास कर रहें हो परन्तु अपने बच्चों को भारत की सभ्यता, संस्कृति, गौरवशाली इतिहास, विरासत, कला, आध्यात्मिक और सामाजिक परम्पराओं तथा भारतीय मूल से भावनात्मक रूप से जोड़ना नितांत आवश्यक है। भारत के मूल में अहिंसा, करूणा और नैतिकता के दिव्य सूत्र समाहित हैं, इन सूत्रों के साथ युवा पीढ़ी को पोषित करना होगा ताकि करूणा और सहिष्णुता से युक्त भविष्य का निर्माण हो सके। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि इक्कीसवीं सदी में सभी को समभाव, सद्भाव, करुणा और वसुधैव कुटुम्बकम के सूत्रों के साथ आगे बढ़ना होगा क्योंकि विकास का मतलब सम्पूर्ण भारत का विकास होना चाहिये। विकास की शुरुआत अन्तिम छोर पर खड़े व्यक्ति से होनी चाहिये तभी आत्मनिर्भरता की संकल्पना सार्थक हो सकती है।