घर के मुख्य द्वार पर जौ लगाकर बंसत आगमन का स्वागत
गुप्तकाशी,। माघ मास के वसंत पंचमी के आगमन पर सभी लोगों ने मुख्य द्वार पर गोबर के साथ जौ लगाकर क्षेत्र के सुख, समृद्धि की कामना की। साथ ही विद्या, बुद्धि और कला की देवी मां सरस्वती का वंदन कर पीले वस्त्र धारण किए।
पौराणिक कथाओं के अनुसार माघ मास शुक्ल पक्ष के पंचमी तिथि को विद्या बुद्धि की देवी सरस्वती मां का जन्म हुआ था। इसी दिन से बसंत ऋतु आगमन होता है। बसंत ऋतु न केवल विद्या ,बुद्धि और कला का ही द्योतक है, बल्कि क्षेत्र में हिमाच्छादित पर्वत श्रृंखलाओं के बीच में बसे गांव में हरियाली और पीले फूलों के सौंदर्य के लिए भी प्रसिद्ध है। बसंत ऋतु के आगमन पर जहां एक और मौसम ठंड से गर्मी की ओर उन्मुख होता है, वहीं दूसरी ओर प्रकृति सौंदर्य से संजकर लोगों को मंत्र मुक्त करती है। माघ मास में माघ नक्षत्र होने के कारण इसे अति शुभ माना जाता है। यह महीना हेमंत ऋतु से शिशिर की ओर प्रवेश तथा बसंत पंचमी से बसंत ऋतु की ओर अग्रसर हो जाता है। बसंत पंचमी को सूर्य के उत्तरायण होने पर तमाम तरह के प्रयाग स्नान और मठ मंदिर में जाकर मां सरस्वती के पूजन का भी दिन माना जाता है। बसंत पंचमी पर पीले वस्त्र और पीले सामाग्री के दान का महत्व बताया गया है। साथ ही इस दिन लोग पीले वस्त्र धारण कर प्रकृति के सानिध्य में समन्वय स्थापित भी करते हैं। बसंत पंचमी के प्रातः काल स्नान आदि से निवृत होकर घरो के मुख्य द्वार पर जौ को गोबर के साथ लीप कर सुख, समृद्धि, हरियाली की कामना की जाती है।