आध्यात्मिक संस्कृति ही प्रकृति की रक्षकः मुरारी बापू
ऋषिकेश:परमार्थ निकेतन में विश्व विख्यात श्रीराम कथाकार पूज्य संत मुरारी बापू जी पधारे। परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमारों ने शंख ध्वनि और वेद मंत्रों से पूज्य मुरारी बापू जी का दिव्य स्वागत किया। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती और मुरारी बापू ने कुम्भ मेला, हरिद्वार से हरि कथा-हरित कथा के शुभारम्भ पर विशेष चर्चा की। स्वामी जी ने कहा कि कथायें सनातन संस्कृति की द्योतक हैं, वर्तमान समय में पर्यावरण और जल की समस्यायें बढ़ रही हैं इसलिये कथाओं को पर्यावरण, जल और प्रकृति संरक्षण से जोड़ना होगा तभी प्रकृति और संस्कृति बच सकती है। उन्होंने कहा कि जल क्रान्ति जन क्रान्ति बने, जल चेतना, जन चेतना बने, जल जागरण जन जागरण बने और जल अभियान जन अभियान बने तभी मानव जीवन का अस्तित्व संभव है।
पूज्य संत मुरारी बापू जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति का यथार्थ स्वरूप और नूतन आयाम प्रकृति की गोद में ही समाहित है इसलिये मानव विकास एवं नव सृजन के लिये कथाओं को हरित स्वरूप प्रदान करना नितांत आवश्यक है क्योंकि आध्यात्मिक संस्कृति ही प्रकृति की रक्षा कर सकती है। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि युवाओं को संदेश देते हुये कहा कि ‘काम के बनो, राम को बनो’ तभी नेचर, कल्चर और फ्यूचर को बचाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि सनातन संस्कृति सामाजिक-धार्मिक पुनर्जागरण की संस्कृति है। भारतीय संस्कृति में हमेशा से ही तात्कालिक सामाजिक समस्याओं के प्रति जनमानस को जागृत करने में महती भूमिका निभाई है। धार्मिक आयोजनों और कथाओं के माध्यम से तात्कालिक समस्याओं में सुधार और पर्यावरण व जल संरक्षण और वृक्षारोपण हेतु प्रेरित किया जाये तो विलक्षण परिवर्तन हो सकता है। स्वामी जी ने कहा कि कथाओं और धार्मिक आयोजनों के माध्यम से लोगों को उनके मूल से, आदर्शों, जीवन मूल्यों, संस्कार, सुधार, परिष्कार और विचारों की शुचिता से जोड़ा जा सकता है। भारतीय संस्कृति को सच्चे अर्थ में मानव संस्कृति कहा जा सकता है क्योंकि अनेक विपरीत परिस्थितियों के बाद भी भारतीय संस्कृति ने अपने अस्तित्व को सुरक्षित रखा है इसलिये जनमानस को हरित कथाओं के माध्यम से अपने मूल से जोड़कर प्रकृति को सुरक्षित रखा जा सकता है।