मनःस्थिति बदलेगी तो शान्ति की संस्कृति स्थापित होगीः स्वामी चिदानन्द सरस्वती
ऋषिकेश: प्रतिवर्ष 23 फरवरी को ‘‘विश्व शांति और समझ दिवस’’ मनाया जाता है। इस दिन वैश्विक स्तर पर शांति, समझदारी और सद्भावना बनाये रखने पर जोर दिया जाता है ताकि आपस में सद्भाव, शांति, प्रेम और भाईचारा बना रहे। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि ’’परोपकार की भावना और मानवीय मूल्यों के साथ जीवन जीने से ही आत्मिक शान्ति और विश्व शान्ति का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।’’ शान्ति की स्थापना से तात्पर्य केवल आंतरिक एवं बाह्य संघर्षों से सुरक्षाय हमारी सीमायें सुरक्षित हो यही तक सीमित नहीं हैं बल्कि सामाजिक सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन, प्रत्येक व्यक्ति को मौलिक सुविधायें प्राप्त हो तथा सभी को गरिमामय जीवन जीने का अधिकार मिले यह भी शामिल हैं। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी से हैस्को संस्थापक, पर्यावरणविद् पदमश्री डाॅ अनिल प्रकाश जोशी जी ने परमार्थ निकेतन में भेंट की। माँ गंगा और हिमालय के विषय में चर्चा करते हुये कहा कि इनके इतिहास और आध्यात्मिक दृष्टिकोण पर और चिंतन करने की जरूरत हैं ताकि भावी पीढ़ियों को सही और सटीक जानकारी प्राप्त हो सके।
डाॅ अनिल प्रकाश जोशी जी ने आगामी कार्यक्रम के लिये पूज्य स्वामी को आमंत्रित करते हुये कहा कि भारत में स्वामी और संत अनेक हैं परन्तु पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी महाराज का गंगा, हिमालय और गांवों के प्रति जो चिंतन और पीड़ा है वह मुझे भी कार्य करने के लिये प्रोत्साहित करती है। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि शांति की संस्कृति केवल संवाद से स्थापित नहीं हो सकती उसके लिये सतत, समावेशी और टिकाऊ विकास (सस्टेनेबल डेवलपमेंट), वैश्विक एकजुटता, मानवीय गरिमा और मानवाधिकारों का कठोरता से पालन करते हुये सभी को मिलकर सकारात्मक दिशा में प्रयास करना होगा तभी शांति की संस्कृति स्थापित की जा सकती है। शांति बनाए रखने के लिए सभी को प्रत्येक क्षण और अपनी हर श्वास के साथ प्रयास करना होगा जिससे एक बेहतर ग्रह और बेहतर भविष्य निर्माण की दिशा में बढ़ा जा सकता है।
स्वामी ने कहा कि सभी मतभेदों और परिस्थितियों से ऊपर उठकर ही मानवता और शान्ति के लिये कार्य किया जा सकता हैं। परिस्थितियां बदले या न बदले परन्तु मनःस्थिति बदलेगी तो शान्ति की संस्कृति निश्चित रूप से स्थापित होगी। उन्होंने कहा कि आज जो विकास हो रहा कि वह मानव की सुविधाओं के लिये हो रहा हैं परन्तु वह कई अर्थो मंे मानव जीवन को विनाश के रास्ते पर भी ले जाने का कार्य कर रहा हैं इसलिये हमारे विकास का मार्ग और तकनीक प्रकृति और पर्यावरण की दृष्टि से अनुकूल हो वही मानवता के लिये भी प्रभावी और बेहतर होगा। मानवीय मूल्यों का जो वर्तमान में ह्वास हो रहा है उसके लिये मानव ही जिम्मेदार है। यदि मानव प्रकृति और पर्यावरण के प्रति संतुलित एवं विवेकपूर्ण दृष्टिकोण अपनाएं तो मानवीय मूल्यों का ह्वास नहीं अपितु विकास होगाय उत्थान होगा जिससे निश्चित रूप से मानव की समझ बढ़ेगी और शान्तिपूर्ण वातावरण का निर्माण होगा। विश्व शांति और समझ दिवस के अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि आईये वैश्विक शांति और सौहार्द्र की स्थापना के लिये मिलकर आगे बढ़े यही मानव धर्म भी हैं।